गुरुवार, 8 नवंबर 2007

सीरवी समाज का परिचय

सीरवी समाज का संक्षिप्त परिचय - सीरवी मंगल सैणचा
"सीरवी" एक क्षत्रिय कृषक जाति हैं. जो आज से लगभग 800 वर्ष पुर्व राजपूतों से अलग होकर राजस्थान के मारवाड़ व गौडवाड़ क्षेत्र में रह रही थी. कालान्तर के बाद यह लोग मेवाड़, मालवा, निम्हाड़ व देश के अन्य क्षेत्र में फेल गयें. वर्तमान में सीरवी समाज के लोग राजस्थान के अलवा मध्यप्रदेश , गुजरात , महाराष्ट्र , गोवा , कर्नाटक , आध्रप्रदेश , तमिलनाडु , केरल , दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , दमन दीव , पांण्डिचेरी व देश के अन्य क्षैत्र में बड़ी संख्या में रह रहे हैं.
सीरवी समाज के इतिहास का बहुत कम प्रमाण उपलब्ध हैं. इतिहास के जानकार स्व. मास्टर श्री शिवसिंहजी चोयल भावी ( जिला जोधपुर ) वालों ने अपने सीमित सोधनों में जो कुछ भी तथ्य जुटाये उनके आधार पर खारड़िया राजपूतों का शासन जालोर पर था व राजा कान्हड़देव चौहान वंशीय थे उन्ही के वंश 24 गौत्रीय खारड़िया सीरवी कहलाये. सीरवियों के गौत्र इस प्रकार हैं. 1. राठौड़ 2. सोलंकी 3. गहलोत 4. पंवार 5. काग 6. बर्फा 7. देवड़ा 8. चोयल 9. भायल 10. सैणचा 11. आगलेचा 12. पड़ियार 13. हाम्बड़ 14. सिन्दड़ा 15. चौहान 16. खण्डाला 17. सातपुरा 18. मोगरेचा 19. पड़ियारिया 20. लचेटा 21. भूंभाड़िया 22. चावड़िया 23. मुलेवा 24. सेपटा.
अधिकतर सीरवी आईमाता के अनुवयी हैं. श्री आईमाता का मंदिर राजस्थान के बिलाड़ा कस्बा में हैं.
ःःः श्री आईमाता ःःः
आई माता नवदुर्गा (देवी) का अवतार हैं. ऐसा कहा जाता है कि ये मुल्तान और सिंध की ओर से, आबू और गौड़वाड़ प्रदेश होती हुई बिलाड़ा आई. एक नीम के वृक्ष के नीचे इन्होंने अपना पंथ चलाया. आईमाता का पूजा स्थल (थान) बडेर कहलाता है, जहां कोई मूर्ति नहीं होती. आई माता के अधिकतर भक्त सीरवी जाति के हैं, जो क्षत्रियों से निकली एक कृषक जाति है. इस रूप में ये सीरवी जाति के राजपूतों की कुलदेवी है. आईमाता का प्रसिद्ध मंदिर बिलाड़ा में है, जहां दीपक की ज्योति से केसर टपकती है. सीरवी लोग आईमाता के मंदिर को दरगाह कहते हैं. यहां हर माह की शुक्ल द्वितीया को इनकी पूजा-अर्चना होती है. - ( राजस्थान पत्रिका इयर बुक 2007 ,पृष्ट संख्या 865 )के सभार से )
आप भी सीरवी जाति व समाज की जानकारी भेज सकते हैं. हमारा ई-मैल आईडी हैं. msbjd@indiatimes.com